गुरु ओशो रजनीश की जीवनगाथा(Great guru Osho life Story)
ओशो एक ऐसे महान गुरु थे जो बहुत ज्यादा ज्ञानी थे और यह इतने ज्यादा प्रसिद्ध हुए थे की बड़े बड़े देशों ने इनके ज्ञान के आगे घुटने टेक दिए थे| ओशो ऐसे महान व्यक्ति थे जिनकी किताबें आज भी बहुत ज्यादा बिकती है| ओशो को दुसरे देशों में बूकमेन भी बोला जाता था| यह प्रतिदिन तीन से चार किताबें पढ़ा करते थे इन्होंने अपनी ज़िन्दगी में लाखों किताबें पढ़ी है| कोई वक़्त था जब इनके घर में लाइब्रेरी हुआ करती थी परन्तु ऐसा भी वक़्त आय जब इनका घर ही लाइब्रेरी बन गया था| ओशो एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने कोई किताब नहीं लिखी थी वल्कि इनके प्रवचनों के ऊपर बहुत सी किताबें लिखी गयी थी| तो जानते है महान गुरु ओशो के जीवन के बारे में:
ओशो जी का जन्म
ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर 1931 मध्य प्रदेश के रायसेन में एक छोटे से गाँव में हुआ| इनके पिता का नाम बाबूलाल और माता का नाम सरस्वती जैन था| ओशो जी का नाम चन्द्र मोहन जैन रखा गया था| जब इनका जन्म हुआ था तब ज्योतिषों ने इनके बारे में भविष्यवाणी की थी कि इनके जन्म में 21 साल तक हर 7 साल के बाद मौत का योग है| और अगर यह लड़का 21 साल से ज्यादा जी गया तो ये बुद्ध हो जायेगा| जब ओशो 14 साल के थे तब उन्होंने एक मंदिर में जाकर कुछ दिनों तक मौत का इंतज़ार किया की कब मुझे मौत आएगी| लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ओशो के साथ| बचपन से हो ओशो बहुत ज्यादा बुद्धिमान थे वो हर समय पढ़ते रहते थे उनके अन्दर पढ़ने की इतनी ज्यादा काबिलियत थी की वो बड़े बड़े को ज्ञान के मामले में हरा दिया करते थे| बचपन से ही इनको सिधिया प्राप्त होना शुरू हो गयी थी क्योंकि वो हर समय कोई न कोई पुस्तक पढ़ा करते थे| इनके यहाँ एक पीपल का पेड़ था जहाँ वे अक्सर जाया करते थे और बाद में उसी पेड़ से इनके साथ एक ऐसा लगाव हो गया की वही उनको समाधि प्राप्त हो गयी| इनको अमीरों का गुरु बोला जाता है| इनका कहना था कि ”अमीरों का गुरु होना कोई बड़ी बात नहीं है और अमीर परिवार से ही अवतार जन्म लेते है गरीबों के गुरु तो बहुत है परन्तु में अगर अमीरों का गुरु हू तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं” ओशो एक ऐसे गुरु थे जो नए संस्यासी पे बहुत विशवास करते थे| ओशो को सेक्स गुरु भी कहा जाता था| इनका मानना था की जीवन में शादी करो और सेक्स करो और अपने जीवन को अपने ढंग से जियो| उनकी इसी बात से ओर धर्म गुरु चिढ़ने लगे थे लेकिन लोगों को इनके प्रवचनों ने सीधा प्रभावित किया लोग इनको सुनना बहुत पसंद करते थे| इनका कहना था कि लोग शादी के बाद भी सन्यांस धारण कर सकते है और पारिवारिक रूप से सन्यांस ले सकते है यही कारण था की लोग इन्हें ज्यादा फॉलो करते थे|
यह पढ़ें: राजपूत पृथ्वीराज चौहान
ओशो जी का बचपन कहाँ बीता
इनके माता पिता के 11 बच्चे थे इनका बचपन इनके नाना नानी के यहाँ बीता यह अपनी नानी के बहुत ज्यादा लाडले थे| और नानी ने इन्हें बहुत ज्यादा स्वंतंत्रा दी हुई थी यह कहीं भी जा सकते थे कुछ भी कर सकते थे| और ओशो जी ने 15 साल तक बहुत ज्यादा पढाई की ओशो ने पढाई के दौरान बहुत से कॉम्पीटीशन भी जीते थे| बचपन से ही यह लोगों को बताते थे जो भी इन्होंने पढ़ा होता था और इन्हें सुनने के लिए बहुत भीड़ इकठ्ठी हो जाति थी| बचपन में ही महानता की राह में चले गए थे यह अपनी दादी जी को रोज किताब पढ़ कर सुनते थे| इन्होंने धर्म के बारे में पढ़ना शुरू किया उसके बाद इनके अंदर बहुत से तर्क निकाले| इन्होंने सती प्रथा के बारे में पढ़ा कि अभी भी यह प्रथा चली आ रही है| जब हिन्दू वर्ल्ड कॉन्फ्रेश में इनको बुलाया गया तब इन्होंने उन प्रथाओं के बारे में बहुत बोला की जो यह प्रथा है है वो आज भी क्यों चली आ रही है| 19 साल के होते हुए इन्होंने अपनी चेतना का भी विस्तार कर लिया था| इन्होंने सभी धर्मो को पढ़ लिया था तो इन्होंने कहा था की सभी धर्मो में चेतना को जगाने की बात कही है| लेकिन इन्होंने फिर भी पढाई नहीं छोड़ी और जब भी सर्व धर्म समेल्लन (1951 से 1968 तक) हुआ करता था उनमें यह भाग लिया करते थे| यह जितना पीपल के पेड़ से जितना लगाव हुआ करता था उतना लगाव इन्हें किसी इंसान से भी नहीं हुआ था और उसी पेड़ के नीचे इन्होंने समाधी ले ली थी| लेकिन इन्होंने पढाई नहीं छोड़ी 21 साल के थे जब इनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी तब इन्होंने यह बोला था की मुझे कुछ नहीं चाहिए मैंने सब कुछ पा लिया अब मैं सबको पढ़ाउंगा परन्तु इन्होंने पढाई नहीं छोड़ी इन्होंने B.A. किया उसके बाद M.A. भी किया फिलोस्पी में पढाई में यह गोल्ड मेडीलिस्ट रहे है| जैसे ही इन्होंने M.A. किया उसके बाद संस्कृत के अध्यापक बन गए लेकिन जहाँ भी जाते थे यह बहुत तर्क वितर्क करते थे| और यही कारण था की दुसरे इनसे चिढ़ जाते थे| जिस कारण कई बार इनके ट्रान्सफर किये गए| और उस समय ओशो को समझ आ गया था कि वो अध्यापक बनेगे परन्तु किसी स्कूल या कॉलेज के नहीं पूरी दुनिया को पढ़ाएंगे| और इसके बाद इन्होंने पढ़ाना शुरू किया 1960 से लेकर 1966 तक इन्होंने भारत भ्रमण किया और हर एक स्पीकिंग टूर में जाने लगे| इसके बाद ओशो आचार्य रजनीश बन गए और बाद में इन्हें भगवान् रजनीश भी कहा जाने लगा था| इनकी प्रसिद्धी इतनी बढ़ने लगी थी जो भी बड़े बड़े धर्म गुरु थे वो इनसे घृणा करने लगे थे क्योंकि लोग इन्हें भगवान् मानने लगे थे और बड़े बड़े राजनितिक नेता इनसे सलाह लेने आया करते थे| और जो लोग गाँधी जी को मानते थे वो भी इनसे बहुत नाराज़ हो गए थे क्योंकि इनका मानना था की गाँधी जी अहिंसा का पाठ पढ़ाते थे परन्तु वो ओशो जी की नज़र में हिंसक थे| ओशो की एक और बात थी की वो जो भी बोल देते थे उससे बदलते नहीं थे जो उन्होंने बोल दिया वो पत्थर की लकीर था| ओशो ने इतनी ज्यादा किताबें पढ़ी थी इन्हें 20वीं सदी की सबसे ज्यादा किताबें पढ़ने वाला व्यक्ति मन जाता था ओशो कहते थे कि किताबों के साथ उनका पवित्र रिश्ता है किताबें उनके लिए सिर्फ किताब नहीं है इससे बहुत ज्यादा बढकर है| 1970 में यह मुंबई चले गए थे और इनके शिष्य में बड़े बड़े लोग आते थे इनके पास भारत के अलावा दुसरे देशों के भी बड़े बड़े लोग इनको सुनने को आया करते थे| और इन्हें उस वक़्त एक आश्रम की जरूरत थी तो माँ योग लक्ष्मी ने इनकी मदद की थी जिनके कांग्रेस के साथ बहुत अच्छे रिश्ते थे| इनका आश्रम पुणे में बना जो आज भी वहां मौजूद है|
यह पढ़ें: डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर जी
ओशो का पुणे में आश्रम
यह 1974 से लेकर 1981 तक यह पुणे में शिफ्ट हो गए| पुणे आश्रम में 6 बजे उठा दिया जाता था डायनामिक मैडिटेशन और 8 बजे ओशो का लेक्चर पुरे डेड घंटे दिया जाता था जिसे सुनने के लिए बहुत भीड़ इकठठा हुआ करती थी| और पुरे दिन अलग अलग थेरेपी दी जाती थी| यहाँ पे सेक्सुअल एनर्जी को यहाँ पर बहुत ज्यादा फोकस किया करते थे ओशो| लेकिन बाद में जैसे जैसे वक़्त आगे बड़ा आश्रम में प्रोब्लम आना शुरू हो गयी थी जो थी की यहाँ पे जो भी सेक्सुअल मुठभेड़ होती थी वो बहुत ही ज्यादा आक्रमकशील हो गयी थी बाद में यहाँ पर ड्रग्स बहुत चलने लगा जिसके चलते ओशो की इमेज को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुँचने लगा था| बहुत ज्यादा संन्यासी को यहाँ से समृधि लेकर निकलते थे उन्होंने ओशो के साथ मिलकर काम करना शुरु कर दिया था| यहाँ पर बहुत से वेस्टर्न आने लगे थे और जैसा माहौल इस आश्रम बाहर था यहाँ पर अन्दर कुछ और ही चल रहा था| और यहाँ पर धीरे धीरे विसिटोर्स बढ़ने लगे थे अब ओशो को लगने लगा की जहाँ वो आश्रम चला रहे है वो बहुत छोटा है अब उन्हें एक बड़े आश्रम की जरूरत थी|
ओशो अमेरिका कब गए थे
1981 एक ऐसा साल था जिसमे ओशो ने फैसला किया की वो अब अमेरिका शिफ्ट हो जाते है| क्योंकि हर साल 30000 विसिटोर्स बढ़ रहे थे| अमेरिका जाने के बाद ओशो ने एक घोषणा की कि वो तीन साल तक मौन व्रत रखेंगे कुछ नहीं बोलेंगे| और इसी दौरान माँ योग लक्ष्मी को बदलकर माँ आनंद शीला कर दिया गया जो ओशो की सेक्रेटरी थी| परन्तु इन्होंने घोटाला करना शुरू कर दिया क्योंकि इन्होंने अमेरिका जाने के लिए वीसा में यह लिखाया था कि ओशो की तबियत ख़राब है जिसे चेक करवाने के लिए वो अमेरिका आ रहे है| 13 जून 1981 में शीला के पति जॉन शेल्फेर ने अमेरिका में बहुत बड़ी प्रॉपर्टी खरीदी जिसे बढ़ाकर इन्होंने 260 सीकुअर किलोमीटर में बड़ा लिया और धीरे धीरे भक्तों को लाना शुरू कर दिया| ओशो ने वहां पर बिल्डिंग बनाना शुरू कर दिया परन्तु ओशो का सारा काम माँ शीला देख रही थी जिस कारण उनके ऊपर बहुत ज्यादा आरोप लगे| और इस एरिया का नाम रजनीशपुरम रखा गया और जहाँ पर ओशो को फॉलो करने वाले बहुत से भक्त आकर रहने लगे थे| लेकिन जो आस पास के लोग थे यह उनको पसंद नहीं आ रहा था और उया वक़्त वहां पे रोनेर द्रिगन की सरकार थी जिन्होंने वहां पर पहले ही जिन जोंस का वाक्य देखा था| और वहां पे बायो टेरर अटैक के सम्भावना बढ़ने लगी थी| यहाँ पे एक वायरस जिससे टाईफाईड होता था वो लोगों को इंजेक्ट किया जाने लगा| लेकिन जब ओशो को गिरफ्तार किया गया उस वक़्त ओशो ने बताया की इस बारे में उन्हें कुछ भी मालूम नहीं था उन्हें माँ शीला ने धोखा दिया है| यहाँ तक की ओशो को भी मारने की साजिश की गयी थी जब अमेरिकन सरकार ने देखा की यह तो एक शहर बस चूका है और इस शहर के उपर इन्क्वायरी कमीशन को बैठाया गया| ताकि जो यह रजनीशपुरम बन रहा है इसे रोका जा सके| और जब इसे कोर्ट में पेश किया गया तब सारी सच्चाई सामने आ गयी थी ओशो पहले से ही तीन साल के लिए मौन व्रत धारण किये हुए थे और जो भी माँ शीला कहा करती थी उसे ओशो का आदेश मान लिया जाता था| लेकिन जब माँ लक्ष्मी को खतरा लगने लगा तो वो अपने पुरे ग्रुप के साथ यूरोप चली गयी| जिसके कारण पुरे आरोप ओशो पे लगने शुरू हो गये जब यह ओशो को पता चला तो वो माँ शीला में बहुत गुस्सा हुए| और 1984 को जो ओशो ने तीन साल का मौन व्रत लिया था उसे तोडा और उन्होंने बताया की जो भी आश्रम में हो रहा था उसमे से माँ शीला ने उनको कुछ नहीं बताया था| और जो भी माँ शीला ने किया है वो बहुत बड़ा क्राइम है लेकिन अमेरिका सरकार ने ओशो की कोई भी बात नहीं मानी और ओशो को पांच साल के लिए बैन कर दिया| ओशो जी को जिस जेल में रखा गया था वहां पे बहुत बीमार लोग रहते थे| और सरकार ने सोचा की अगर ओशो यहाँ रहेंगे तो ओशो बीमार पढ़ जायेगे परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ ओशो 12 दिन जेल में रहे उन्हें कोई बीमारी नहीं हुई| ओशो जहाँ भी जाते थे उनके ऊपर फूल बरसाए जाते थे ओशो जब कोर्ट गए तब भी उनके ऊपर फूल बरसाए गए इनके चाहने वालों ने कोई दंगा नहीं किया इनके चाहने वाले बहुत ही शांत थे| और यह सब देख कर अमेरिका सरकार भी चौंक गयी उन्हें लगा की उन्हें कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा इसीलिए उन्होंने ओशो को देश निकाला कर दिया गया|
ओशो की भारत वापिसी
1985 में ओशो भारत आये जहाँ पर बहुत अच्छे से ओशो का स्वागत किया गया| इसके बाद ओशो कुल्लू मनाली गए उसके बाद यह नेपाल चले गए फिर उसके बाद लंदन गए पूरी दुनिया में घूमते रहे आखिर में 30 जुलाई 1986 में यह बॉम्बे वापिस आये उसके बाद अपने आश्रम पुणे चले गए वहां पे उन्होंने लेक्चर दिया| और जब यह 58 साल के थे उस वक़्त 19 जनवरी 1990 में इनका स्वर्गवास हो गया| इनकी मौत भी एक रहस्य बनकर रह गयी किसी ने कहा की इन्हें ज़हर दिया गया लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है| ओशो का कहना था की वो किसी भी धर्म से संबंध नहीं रखते है वो हर धर्म को मानते थे तो इसके ऊपर बहुत से धर्मो के लोगों का कहना है की वो बौद्धिक धर्म से सम्बंधित थे तो हर धर्म गुरु उन्हें अपने धर्म का कहता है परन्तु ओशो धर्म से बिलकुल परे थे वो एक महान गुरु थे|